लहरों के हिलोंरों में
खेलती सी वो
कभी मुस्कुराती देखकर
उस भीगे से चाँद को
ओस की बूँदें
मानो बह सी रही थीं
उसके बदन पे
जैसे कह रही थीं
की आओ थोड़ा और करीब
कुछ और पास
ज़िन्दगी में मिले हैं
ये लम्हे कुछ ख़ास
लहरों के हिलोंरों में
खेलती सी वो
आँखों में जैसे
कोई चमक सी थी
अधूरी सी प्यास
मानो दमक रही थी
हवा भी बह रही थी
उसके मिलन में
जैसे उसे उड़ना हो
नीले गगन में
लहरों के हिलोंरों में
खेलती सी वो
ज़ुल्फ़ों में उसके
कुछ नशा सा था
धुंधला सा आस्मां
खुला सा था
वो धीमे से हंस रही हो जैसे
मन ही मन हमसे
कुछ कह रही हो जैसे
नहीं जानते थे
क्या चाहती थी वो
उन भीगे पलों में
क्यों खिलखिलाती थी वो
पर आज भी करते हैं याद
उन लम्हों को
लहरों के हिलोंरों में
खेलती सी वो
Mystical Wanderer
Nice poem, great cover photos.. Related to meaning of the poem.
ReplyDelete