Friday, November 21, 2014

मेरा कोई नाम नहीं


मेरा कोई नाम नहीं



मेरा कोई नाम नहीं
मै अकेला हूँ
ज़िन्दगी की दिक्कतों को
मै अकेला ही झेलता हूँ
कहने को एक बड़ा सा परिवार है
मेरे लिए वो सिर्फ
मुसीबत का पहाड़ है
अब आप ही बताइये
कहाँ से लॉन इतने पैसे
घर में इतना खाना
मै लाऊँ कैसे
पिताजी की चिल्लुम
माँ का चश्मा
बच्चों के लिए रोटी
बीवी के साथ होना
कैसे करूँ इतना कुछ
कैसे लाऊँ सब कुछ
दिवाली भी तो आ रही है
और बेटी की शादी भी करनी होगी
सारी मुसीबतें
इखट्ठे ही आती हैं
इतनी सारी ज़रूरतें
आखिर कैसे पूरी होंगी
 शर्मा जी की बात
मान लेता हूँ
कर लेता हूँ चोरी
बड़े बड़े लोग
यही तो करते हैं
थोड़ी सी हेरा - फेरी
पर साली ये किस्मत
वक़्त पे साथ नहीं देती
ज़मीर की वो आवाज़
जान क्यों नहीं ले लेती
पर कैसा ज़मीर
कैसी अच्छाई
अरे बूखे पेट से पूछो
क्या होती है भूख
वो टूटे टुकड़े रोटी के
कितने कीमती होते हैं
उन्हें क्या पता
जो गद्दों पे सोते हैं
क्या जानते होंगे वो
ज़मीन पर सोना
बिना किसी नाम के
मौत से बत्तर
ज़िन्दगी जीना
उनके लिए तो ये सब
एक खेल है
कहते हैं
नीचे रहना नहीं सीखे
तो ज़िन्दगी फेल है
अरे खाड़ी पहन लेने से
नीचे नहीं आ जाते
खाड़ी भी तो
इतनी महंगी है
और महंगे हैं
वह शांत सन्नाटे
हमें तो भीड़ में ही
रहना पड़ता है
उस सड़क के
एक कोने पर
भूखे पेट ही
सोना पड़ता है
ये भी
अपनी अपनी किस्मत है
किसी के पास कुछ नहीं
कैसी के पास
सब है

मेरा कोई नाम नहीं
मै अकेला हूँ
और बेनाम हैं मेरे जैसे
कई लोग
जो उस सड़क के किनारे सोते हैं
पल में हस्ते
पल में रोते हैं


Written by - Mystical Wanderer

1 comment:

  1. haan mera koi naam nahin... aap ne durust farmaya... pata nahin aapne mujhe kahan dekha... meri to koi pehchan nahin... zindagi ke zid mein zinda hun... par zinda hone ka ehsaas nahin... bohot badhiya

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