Tuesday, November 11, 2014

जिस्म की नीलामी


करते हैं हम आज नीलाम जिस्म अपना
जाने किस किसका था ये सपना
एक एक अंग और ये सांसें
ये तन मन और दुनिया की बातें
वो कहते थे की हूर सा बदन  है हमारा
लो कर दिया नीलाम आज इसे सारा
उठा लो अपना अपना हिस्सा और ख़त्म कर दो हमें
मिटा दो हमारी हस्ती, शायद चैन आ जाये उन्हें
मिटाने को हमें पहला हाथ उन्ही का उठेगा
खंजर सी जुबां का पहला वार चलेगा
शायद तब ये धंधा कुछ रुक जाए
शायद तब उनकी आँखें कुछ झुक जाएं
वो कहते थे हम बाज़ार में रोज़ उतरते हैं
आज सोचा चलो ये भी करते हैं
क्या पता आज हमें हमारी कीमत कोई बता दे
चलो आज हम ही खुद को पैदा होने की आखिरी सजा दें
तोह करते हैं हम आज नीलाम जिस्म अपना
जाने किस किस का था ये सपना

written by - mystical wanderer


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