ना देखी बस खुद्दारी
खुद खुदा से बन बैठे
जब देखी उसकी यारी
वो दर्द वो प्यार
और फिर तकरार
शायरी तो तब से करते थे
ना कहते थे जब उनको यार
रूह तो तुम्हे दे दें
पर रूह का तुम करोगे क्या
खोखली सी एक बेजान आवाज़
सुन सकोगे उसका इकरार
वो दर्द वो ख़ुशी
आंसू फिर धीमी सी हसीं
ख़ुशी और गम तो यूँ ही आ जाते हैं
रूह पा जाने से और क्या पाते हैं
शायरी तो आपने कर दी
करा नहीं तो दीदार
उस एक हवा के झोंके से
भेजा था जिसमें ढेरो प्यार
हाँ खूब मिली होगी तुम्हे
वो महफ़िल और ख़ास मिज़ाज़
पर हम ना थे वहां
ना हम ना हमारा आगाज़
हम जानते हैं
की बहुत ख़ास नहीं हैं
हम आपके
इतना भी पास नहीं हैं
पर दो पल जो तुमसे
यूँ कह जाते हैं
मानो सारा गम
कहीं रह जाते हैं
थोड़ी सी ख़ुशी
थोड़ा सा प्यार
यही देना जानते हैं
आँखों में भर के प्यार
गर तुम्हे ये भी नहीं चाहिए
तो ना सही
हम तो अकेले ही रहते हैं
थोड़ा और सही
दुनिया आती जाती रहेगी इसी तरह
शायद फिर किसी दिन फिर मिलें
किसी तरह
फिर कुछ पल मिल कर कश लेंगे
फिर उन दो पलों में थोड़ा हंस लेंगे
आखिर ज़िन्दगी जीने का ही तो नाम है
और यकीन मानिए
खुश रहना और करना
यही हमारा काम है
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