Monday, November 17, 2014

उस मक़बरे के पास


आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार
लगता है कोई नया मरा है
पुराने के साथ कुछ नया पड़ा है
पर क्या फ़र्क़ पड़ता है
क्या फ़र्क़ पड़ता है की वहां
अब एक नहीं दो मुर्दे गाड़ी थे
क्या फ़र्क़ पड़ता है की उनके
नाम भी नहीं दिख रहे थे
कौन आएगा उनको पूछने मरने के बाद
कौन करेगा उनको
इस दौड़ती ज़िन्दगी में याद

आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार
शायद कोई दो आंसू कुछ समय तक गिराये
शायद किसी रूह में ये दिन समां जाये
जब हाथों से दफना दिया उसको
जिसके साथ जीते थे कभी तोह
शायद वो पल उसे तब याद आएं
जब न रहे वह मुर्दे न उनके साये
पर कब तक रहेंगे ये मुर्दे याद
ज़िन्दगी में रोज़ आती है एक नयी फ़रियाद
किस किसको यादों में ज़िंदा रखेंगे
आखिर कब तक मुर्दों में खुद को रखेंगे

आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार
लोग कहते हैं मरने के बाद
भी रूह ज़िंदा रहती है
वो देखती है सब कुछ
और रातों में कुछ कहती है
अरे पहले ज़िंदा लोगों की तो सुन लो
किसको ज़िंदा रखना है किस को मुर्दा
ये तो चुन लो
कोई तरसता है तुम्हारे कुछ पलों के लिए
किसी से मिलने को आप तरसते हैं
देखते ही देखते ज़िन्दगी गुज़र जाती है
और लोग बिछड़ जाते हैं

आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार
शायद कोई और प्यासा मरा है
शायद किस्मत ने उसको भी ठगा है
या शायद वह यही चाहता है
मौत से लड़कर कोई कहाँ जाता है
और मौत के भी तो कई नाम हैं
लोग कहते हैं
ये सबसे उम्दा आराम है
ना नाम ना काम ना कोई लड़ाई
ना कोई इच्छा ना देनी किसी को सफाई
अरे भावनाएं ही तो नहीं होतीं
तो दर्द भी होता होगा कहाँ
मिटटी में मिल जातें हैं सब
कुछ पलों में जहां

आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार
पर अब कहाँ दीवार रहेगी
मरने के बाद कहाँ कोई बात याद रहेगी
अब तो चाहे दफना दो
पड़ोस के उस जानी दुश्मन के साथ
चाहे लौटा दो
वो छीनी  ख़ुशी, वह खोया प्यार
अब कहाँ कोई तकलीफ दे पायेगा
मुर्दा है वो
यही तो ज़िन्दगी को
टक्कर का जवाब दे पायेगा
यही तो है ज़िन्दगी को मतलब देने वाला
हाँ यही है उन लकीरों से दूर
मिटटी में रहने वाला

आज अचानक उस मक़बरे के पास
देखी इक नयी दीवार


























written by - Mystical Wanderer


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