Thursday, November 13, 2014

वो अनकही डोर



खुद की पहचान  किसे  है
शायद उस खुदा  को भी नहीं
मोक्ष का इंतज़ार किसे है
जब मौत का वक़्त पता ही नहीं
हर सांस में जी लेते हैं
हर सांस में मर जाते
उस एक पल में शायद
हर ख़ुशी हर गम हैं पाते
अपना तो मुझे तुम कर लोगे
शायद दोस्त भी बन जाओगे कभी
दोस्ती की वो प्यारी सी डोर
जब बंध ही गयी है अभी
यूँ तो लोग ज़माने में बहुत हैं
और शायद  हम दोनों के कई शौक हैं
पर पाक सा दिल नहीं मिलता हर बार
एक छोटी सी दुनिया बीच बाजार
तुम और तुम्हारा कहना यार
सच्चे दोस्त आजकल मिलते कहाँ हैं
वो छोटे से सपने अब खिलते कहाँ हैं
गर मान ही लिया है तुमने हमे दोस्त
तो हम भी कम नहीं
न निभा पाएं ये दोस्ती हमेशा
इतना हम में भी दम नहीं
वो ठोकरें वो प्यार
वो रास्ते और दीवार
सब प्यार करने का दम रखते हैं
आपको क्या लगता है
बस आप ही दोस्ती की हिम्मत रखते हैं
अजी हाथ तो मिलाइये
एक कदम तो उठाइये
जहाँ चाहेंगे
हमें वहीँ पाएंगे
वो चाँद की भीनी चांदनी
से दुनिया भर जायेंगे




                      Written By - Mystical Wanderer

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