Tuesday, November 25, 2014

इस दर्द को कैसे छुपाएं



इस दर्द को कैसे छुपाएं
ये तो आँखों से छलकता है
लाख मुस्कुराएं तब भी
रुंधे गले में अटकता है
एक पहर मौत से जीते हैं
एक पहर गुज़रे पल सीते हैं
कभी गुनगुनाते हैं वो दर्द भरे गीत
कभी बिन बात फफकते हैं
कभी बेबस से एक टूक देखते हैं
उस दबी सी चीख को
और फिर अचानक
यूँ ही सुबकते हैं
हाँ कभी मुस्कुरा भी देते हैं
आखिर लोग प्यार को तरसते हैं



इस दर्द को कैसे छुपाएं
वो लम्हे तो खुद ब खुद छलकते हैं
लाख मुस्कुराएं तब भी
कुछ लम्हे मैं में ही सुलगते हैं
कुछ पल थे जब हम जीते थे
कुछ पल ये हैं
जब हम हर पल मरते हैं
कभी गीले बदन पर
आंसू भी देखा करते हैं
कभी आंसू भरे चेहरे को
पानी से धुंधला करते हैं
उन आँखों को कैसे समझाएं
जो हम अब भी देखा करते हैं
घरोंदों के सपने आँखों में भर
वो आज भी हमें
यूँ ही देखा करते हैं
पर वो भी तो अक्स हैं उन लम्हों के
जो यादों में अक्सर सताया करते हैं

उस दर्द को कैसे छुपाएं
वह लम्हे हर लम्हों में यूँ घुलते हैं
साड़ी उम्र लगा दी हमने
लोग मोहब्बत में कुछ ऐसा पड़ते हैं
दौलत, रुतबा, खुद और खानदान
उस इश्क़ में यूँ क़ुर्बान करते हैं
खुद की खबर नहीं रहती
लोग इश्क़ जब करते हैं
घर छूट जाये इश्क़ उन राहों में
क़िस्मत से रुस्वा करते हैं
ज़िन्दगी की आबरू नहीं रहती
लोग कुछ ऐसी मोहब्बत करते हैं
उस दर्द को कैसे छुपाएं
जब खुद की परवाह ही नहीं करते हैं
लाख मुस्कुराएं तब भी
वो लम्हे आंसुओं में छलकते हैं



Written by - Mystical Wanderer



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