Tuesday, December 2, 2014

जब सब कुछ हर वक़्त रहे



ज़िन्दगी की इस दौड़ में
जाने कितने आते हैं
कुछ साथ रहते हैं हमेशा
कुछ पीछे छूट जाते हैं
कितनी अजीब होती है ये ज़िन्दगी
कभी कोई पराया कभी कोई ज़िन्दगी
कभी किसी के होने का
एहसास भी नहीं होता
कभी किसी के ना होने से
इंसान सब कुछ है खोता
क्या कुछ ऐसे नहीं हो सकता
की सब कुछ हर वक़्त रहे
वो प्यार वो गुस्सा
सब कुछ अपना रहे
पर तब तो साथ रहेगा सब कुछ
वो गर्दिश सा बहुत कुछ
तब मौत भले ना होगी
पर कोई पैदा भी होगा कहाँ
दुःख नहीं आया
तो ख़ुशी भी मिलेगी कहाँ
पर ऐसे भी तो हो सकता है
कि जो हम चाहें
वही हो जाए
हमारी मर्ज़ी से
हमारी ज़िन्दगी में
वो खुद भी आये जाए
सब कुछ वैसे ही हो
जैसे हम चाहें
हर ख़ुशी हर गम
हमारी मर्ज़ी से आये जाए
पर कोई तब गम क्यों मांगेगा
और क्या पता कोई अपनी ख़ुशी में
किसी का गम ही मांगेगा
और हर एक कि इच्छा पूरी हुई
तो क्या हो पायेगा
फिर एक नयी परेशानी
एक नया बाज़ार बन जायेगा
फिर कोई ऊपर
कोई नीचे होगा
फिर कुछ न कुछ
हर कोई भींचे होगा
नहीं
ज़िन्दगी अजीब ही सही
हम नहीं चाहते इतना कुछ देखना
पर ये भी तो एक पहलु है
चलो इसे यूँ ही देखना
कुछ शब्दों के इस घरोंदे में
कुछ पलों कि हिमाकत में
आखिर अजीब सी ज़िन्दगी को
कुछ नया दिखाना बनता है
कुछ सपने देख कर
थोड़ा मुस्कुराना बनता है


written by - Mystical Wanderer

No comments:

Post a Comment