वक़्त की आवाज़ हर वक़्त नहीं आती है
वो करती है आगाज़
ज़िन्दगी गुज़र जाती है
कशिश और दीदार
हर वक़्त बना रहता है
ए खुद तू तनहा
कैसे रहता है
जानते हैं तूने दुनिया बनायीं
बन्दे बनाये खुद्दारी जगाई
पर तू क्यों अकेला है
तेरा बनाया तो सारा मेला है
शायद मेले में
तुझे भी अकेला लगता है
शायद तेरा मन भीड़ में भी
तनहा ही लगता है
सुरभि
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