Tuesday, August 4, 2015

बालू जानती है बहुत कुछ


इक मुद्दत हुई तुमसे गुफ्तगू किये
तुम्हे देखे तुम्हे छुए
शायद वक़्त बदल गया
रह गया बहुत कुछ
अनकहा अनसुना

तुम्हे बहुत कुछ कहना है
वक़्त के साथ फिरसे
तुम्हारे साथ बहना है
बालू सा फिसल गया
वक़्त हमारे हाथ से
जी लिया कुर्बान किया
सब कुछ आप पे
पर फिर भी ये पल
है कुछ अधूरा
शायद रह गया बीता पल
कुछ अधूरा
फिर भी पूरा

हम खुदगर्ज़ थे
तुम भी
और मैं भी
हम बेदर्द थे
खुद के लिए
और एक दूसरे के लिए

कभी हर पल हर सांस
इक साथ जिया करते थे
मुद्दत से अब तक
जाने कैसे जिया करते थे
तुम नहीं हो साथ मेरे
मै नहीं हूँ साथ तुम्हारे
पर फिर भी हम अस्तित्व रखते हैं
तुम और हम आज भी
साथ जिया करते हैं

हर सांस जो हम दिल से लिया करते हैं
हर ख़ुशी हर गम में
हम हमें याद करते हैं
साथ नहीं तो क्या
गर पास नहीं तो क्या
हर वादी हर नदी
हर लहर में तुमसे मिलते हैं
समुन्दर के शोर में
हम तुमसे बातें करते हैं

कभी उसी बालू पर
हम खेल करते थे
आँखों से गुफ्तगू करते
हम रट हम हस्ते थे
वह बारिश की कीचड हमें आज भी याद है
वह चाँद से हमारा रिश्ता
आज भी साथ है
वो बड़ी बड़ी आँखें
वह खट्टी मीठी बातें
वह हसना वह गाना
वह रोना वो चिल्लाना
बालू जानती है बहुत कुछ
बालू आज भी वहीँ है
ले कर सब कुछ
बस वह मुठी में नहीं
अब वक़्त हमारे बस में नहीं

इक मुद्दत हुई तुमसे गुफ्तगू किये
तुम्हे देखे तुम्हे छुए
शायद वक़्त बदल गया
रह गया बहुत कुछ
अनकहा अनसुना

 - सुरभि रोहरा





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