अँधेरी रात की धीमी सी चांदनी
फुसफुसा के गयी जब एक भीनी सी मुस्कान
सिरसिरा सी गयी सिसक जुबां की
जब लिया उस एक पल ने थाम
बदन की चीख मानो शांत हो गयी
शाम के चिराग में इक सिरहन सी दौड़ गयी
इश्क़ की उस जलती शमा की रात से
अँधेरी रात की डबडबाती आवाज़ से
है सी लगी उस शहर में
जहाँ थी सांस उसके गेहेन में
थमी सी सांसें रुके से दिन
उल्फत भरी ज़िन्दगी
दिल्लगी उनके बिन
रुतबा सा नूर में
आँखों में जगजाई
कहते हैं हमने कर दी
जगहसाई जगहसाई
हिसाब लेंगे उस खुदा से
ऐ खुदा हमने क्या की खुदाई
कि किस्मत में लिख दी
इतनी तन्हाई और जुदाई
याद करेंगे जब वो एक शहर सा
मिल के बैठेंगे हम उसके हीर सा
झिलमिलाती आँखों से जब निकलेंगे लहू बन कर
कर देंगे खुद को उसके नाम
सब हार कर
सब हार कर
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