Sunday, July 12, 2015

इश्क़ से रु- ब - रु हुए फिर इक बार


इश्क़ से रु- ब - रु हुए फिर इक बार
प्यार या कशिश
राँझा या यार
बावली सी हुयी फिर मैं इस बार
ख़ुशी या गम
कैसा प्यार

दीवानी तो पहली भी थी
पागल हमको दुनिया कहती थी
बदनाम शख्सियत का अँधा प्यार
दिल्लगी कर बैठे हैं यार
हाँ चाहते हैं तुम्हे दिल से
करते हैं ऐलान
बेख़ौफ़ से जी उठे हैं
फिर इक बार
कफ़न पर भरी है
पहली किलकारी
रात में देखी है
दुनिया प्यारी

किस्मत पर नहीं यकीन
बस करते हैं तुमसे प्यार
दो पल या पूरी हस्ती
कौन जानता है
दास्तान-ऐ-प्यार

दुनिया की हाय
से अब कोई खौफ नहीं
मौत से बढ़कर
अब कोई शौक़ नहीं
हाँ इश्क़ में मर गए हैं
फिर इक बार
फिर जी रहे हैं
मौत के पार
फिर भर रहे हैं
खुशियां अपार

ज़िन्दगी से अब कोई
ख्वाइश नहीं
कसमों वादों का
अब हमें शौक नहीं
शायद ज़िन्दगी ने बहुत सिखाया
खुद खुदा  ने भी हमें ऐसा बताया
ना कर  दिल्लगी
इश्क़ है काला साया
पर ज़ालिम इस दिल को
आखिर कैसे समझाएं
 खुदा की सुनें
या खुद को बताएं
धधकती मिटटी की प्यास
बिन बरसे कैसे मिटायें

इश्क़ में मिट गए हैं फिरसे
प्यासे हो जैसे कब से
तुझको चाहते हैं
रब से
तुझको चाहते हैं
रब से



Written by - Surbhi Rohera

No comments:

Post a Comment