किसी सींप में रखी
मोती सी
रेत में दबी छोटी सी
मन ही मन चमक रही हूँ
इंतज़ार में
उस एक नज़र के
जो इस सींप पर पड़ेगी
और मुझको चुनेगी
शायद मुझे इस सींप से
बाहर निकालना चाहिये।
पर डरती हूँ
कहीं इस रेत के समुन्दर में
दब न जाऊं
कहीं ये लेहरें मुझे
ले न चलें
कहीं इस बड़ी सी दुनिया में
मैं खो न जाऊं।
फिर लगता है
हमेशा बंद रहना
भी तो एक मौत है
उस एक नज़र का इन्तज़ार
जाने कितनी लंबी रात है।
पर सींप ने मुझे
संभाल कर रखा है
बहुत प्यार से
ऐशो आराम से
सरो-ताज बना कर रखा है।
पर फिर भी जाने क्यों
लुडक कर
बाहर भाग जाने को
ये जी चाहता है।
गर गुम भी हो गयी तो क्या
बंद ज़िन्दगी से अच्छी
आज़ाद गुमनामी को
ये जी चाहता है।
फिर लगता है
आज़ाद तो अब भी हूँ
सब सोच की ही तो बात है
ये प्यार और अदब
सब बस सींप के बस की बात है।
लेकिन बाहर निकली कहाँ हूँ
और फिर सोच सोच की बात है
जाने ज़िन्दगी कहाँ ले जाये
वो सब सींप के बाहर की बात है।
किसी सींप में रखी
मोती सी
रेत में दबी छोटी सी
मन ही मन चमक रही हूँ
इंतज़ार में
उस एक नज़र के
जो इस सींप पर पड़ेगी
और मुझको चुनेगी
शायद मुझे इस सींप से
बाहर निकालना चाहिये।